Thursday, October 6, 2011

दिल में आता है लिखूं

आज दिल में आता है लिखूं
तब तक जब तक सूख न जाएँ
स्याही या फिर आंसूं
या मिल न जाए जवाब
उस सवाल का जो दिल ने
खुद से पूछा है डर डर के
आज दिल में आता है लिखूं
जब तक खामोशियाँ
उतर न जाएँ कागज़ पर
हैरान से ख़्वाबों को जब तक
हो न जाए सच का यकीन
तब तक लिखूं जब तक
धुंआ न हो जाए रात
और एक रात के साथ साथ
धुंआ हो जाएँ उम्र भर के जज़्बात
दिल में आता है लिखूं
के जब तक रुक न जाए हाथ
जब तक थम न जाए ज़िंदगी
छूट न जाए सांस

4 comments:

  1. Very nice... Very nicely put... I can feel it...

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  2. ..के जब तक रुक न जाए हाथ
    जब तक थम न जाए ज़िंदगी
    छूट न जाए सांस.

    --

    जीती रहो... और लिखती रहो! :)

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  3. Awesome !!! very nicely written!

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