Saturday, October 8, 2011

कभी कभी मेरे दिल में

कभी कभी मेरे दिल में ख़याल आता है 
कि ये ज़मीन ये तारे ये झिलमिल बारात उनकी 
ये चाँद का गहना जो रात ने पहना है 
ये हवाओं की अठखेलियाँ जो लुभाती है दिल 
ये रातों को छतों पर गुज़ारे हुए पल 
ये सर्दियों की धूप में मखमल सी नींद 
ये चूल्हे से उठता हुआ सौंधा सा धुआँ
ये सरसों के सुनहरे खेतों का दामन 
ये दोपहरों की लुका छुपी में बीता बचपन 
ये मासूम बचपन के जैसी ओस की बूँदें 
ये खामोश मोहब्बत भरी दीवानी ग़ज़लें 
ये सुबह का उभरता हुआ नारंगी सूरज 
ये खिड़की पे बिखरते हुए धूप के टुकड़े
ये रेत में डूबे हुए पैरों के अंगूठे
ये तस्वीरों पर पड़े वक़्त के धब्बे 
ये समंदरों को चखना नज्मों में 
ये हाथों का मिलना अनजाने में 
ये सिहरन जो उठती है उनके आने से
ये तलाश बंजारे से सवाली मन की 

कभी कभी मेरे दिल में ख़याल आता है 
ये साँसों में घुलती हुई पल पल ज़िंदगी 
और इससे हुई मुहब्बत के हमारे किस्से 
क्या जी पायेंगे हमारे बाद भी...पल दो पल?

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