Friday, May 8, 2015

कहानी

वो कहती है कहानी सुनाओ माँ
और देखती है आधी मूंदी पलकों से मेरे चेहरे को
मिथ्या की गलियों से चलकर स्वप्नों में अवतरित होने को आतुर
मैं स्मरण करती हूँ किस्से, जो मैंने सुने थे
एक राजा, उसकी तीन रानियाँ
फिर याद करती हूँ कि उस कहानी में
रानियों ने पुत्र प्राप्ति के यज्ञ किये थे
एक और कहानी जिसमें
रूप खो कर एक परी
खुशियाँ खो बैठी थी
कई और कहानियाँ जो एक सुन्दर राजकुमारी की
राजकुमार को पाने की लालसा से आरम्भ होकर
उनके मिलन पर अंत हो जाती हैं
'माँ, कहानी सुनाओ ना'
उसका गीली मिट्टी सा मन, ढाँचो में उतरने के अनभिप्रेत प्रयास में
मैं सुनाती हूँ कहानी एक परी की जिसने
परिश्रम किया, संघर्ष किया, बाधाएँ लांघीं
और अंत में एक कठिन पहाड़ की चोटी साधी
'पर परियों के तो पँख होते हैं ना '
हाँ, पर उन्हें पाने के लिए चोटियाँ चढ़नी पड़ती हैं
आँखें मूँद कर वो सोचती है उस चोटी को,
उस दृष्य को, उस पँखों के जोड़े को
और फैल जाती है उस मुख पर
एक तृप्त मुस्कान, जो कहती है

उसकी परिभाषाएँ हमारी परिभाषाओं से सरल होंगी