Friday, November 25, 2011

रेगिस्तान


रेगिस्तान सा है दिल मेरा
दिन भर तपता है 
एड़ियों की तरह 
सुनहरी रेत के सुनहरे दानों में दबे 
भूले हुए सपनों की तलाश में
प्यास में 
पर जब उतर आती है रात इसके आँगन में 
थम जाता है 
शीतल शिथिल चाँदनी की तरह 
जम जाता है 
जैसे कभी किसी बेरहम बेपरवाह सूरज को
जानता ही नहीं था 

Thursday, November 24, 2011

तलाश


ख़ुदा ढूँढने निकले थे
खुद से मुलाक़ात हो गई
तलाश वहीं पर कुछ
मुक़म्मल सी लगने लगी
मोमबत्ती की रोशनी
जब दिल के कोनों पर पड़ी
एक सरहद सी थी जो दो परछाइओं के बीच
पिघलने सी लगी
मेरे उजालों ने मेरे अंधेरों को
अपनाना सीख लिया 

Saturday, November 19, 2011

कल रात

चाँद को देखा था कल रात मैंने
कुछ भीगा भीगा था वो भी
शाम की बारिश से 
मेरे ख़्वाबों की तरह
हथेलियों को जोड़कर
पी ली थीं मैंने भी
चाँदनी की चाशनी में डूबी
कुछ बूँदें
तुम थे कहीं उस एहसास में 
जिसने हलक को भिगोया तो था 
पर प्यास को बुझा न पाया था 
कल रात चाँद भी
भीगा भीगा सा
प्यासा प्यासा सा था
शायद तुमने भी देखा होगा उसको

तुम्हारे शहर में भी तो अक्सर
बारिशों वाली रातें हुआ करती थीं