Thursday, December 15, 2011


बुझ जाने दो आज दिये
अँधेरों को पास आने दो 
एक बार बस साँसों में
इस सूनेपन को समाने दो 

चाँद का चेहरा बादलों में
अब छुप जाए तो अच्छा
आहों की लड़ी सन्नाटे में
घुल जाए तो अच्छा
बंद कर के पलकों को 
सपनों में न खोना 
ये रात आज गहरा कर 
थम जाए तो अच्छा
कब तक उजालों में हम तुम
झूठे हौसले तापें 
सच आज आँखों के कोनों में
जम जाए तो अच्छा 

फूँक लेने दो आज ये लौ 
पी लें हम ये रात 
एक आख़िरी बार आओ 
जी लें ये जज़्बात