Friday, July 15, 2011

नए दाँत

जबसे  आपने  नए  दाँत  लगाये  हैं
दिल  में  कुछ  खटकता  है 
डर  सा , लगाव  सा 
जब  सुनती  हूँ  किस्से 
आपके  बचपन  के उस  साल  के  
जब  आप  6 साल  के  थे 
और  मज़े  लेते  थे  इंक़लाब  के  नारों  में 
सड़क  पर  मिली  एक  अकेली  गोली  में 
वन्दे  मातरम  के  बेसुरे , तोतले  गान  में 
कहीं  मेरा  मन  अटक  जाता  है 
आपके  इन  नए  दाँतों  के  बीच 
जिन्होंने  बदल  कर  रख  दिया  है 
आपके  चेहरे  को 
थोड़े  ऊंचे  हैं  वो 
और  आपकी  उन्मुक्त  हँसी  को 
कुछ  बचकाना  सा  बना  देते  हैं 
और  थोड़ी  और  मासूमियत  डाल  देते  हैं 
आपके  बचपन  के  किस्सों  में 
पर  मैं  जानती  हूँ 
कि  आपके  दाँत  कभी  भी  
ऊँचे  नहीं  थे 
आकर्षक  थे ...आपकी  हँसी  की  तरह 
पर  अच्छे  हैं  ये  भी 
क्यूंकि  इनसे  उतना  दर्द  नहीं  होता 
जितना  आपके  पोपले  मुंह  को  देख  कर  होता  है 

4 comments:

  1. कोमल और मासूम अहसासों से परिपूर्ण सुन्दर रचना. शुभकामनायें !

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  2. कितनी सरलता से अपने बात कह दी बहुत बहुत बधाई....

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