Friday, July 15, 2011

एहसास

एक कोने मे बैठ कर आज
जब बीते हुए कल को सोचती हूँ
तो थम जाते हैं पल
उस लम्हे में जब
तुमने इज़हार किया था
प्यार का
प्यार - उस एहसास के इंतज़ार में
कब से बैठी थी मैं
शायद तब से जब पहली बार
मेरी गुड़िया ने एक गुड्डे को चुना था
या नानी की कहानी मे
महल मे बन्द राजकुमारी को
राजकुमार विदा कराने आया था
या शायद तब से जब सहेलियों की कहानियाँ
अनजानी और रोमांचक लगने लगी थीं
और मेरे कच्चे मन को
खुद की खोज में
एक और नज़रिये कि ज़रूरत थी
तुम्हारे इज़हार ने उस दिन कुछ हौसला दिया
मेरे अधपके मन को वजूद दिया
और मैं उसे प्यार समझ बैठी
वो दिल की धड़कन का बढ़ना
जो प्यार लगता था तब
आज बस आवेश में होता है
और वो सुकून जो तेरी झलक मे था
वही आज इस लम्बी सी मायूसी में है
न जाने कब उस एहसास ने
 आहिस्ते से दम तोड़ दिया
कि आज वो पल बेरंग तस्वीरों की तरह
मेरी रूह की जर्जर दीवारों पर
तिरछे से लटकते हैं
और हमारे रिश्ते की एकतरफ़ा राहों में
वापसी के नामुमकिन रास्ते तलाशते हैं

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