Saturday, November 19, 2011

कल रात

चाँद को देखा था कल रात मैंने
कुछ भीगा भीगा था वो भी
शाम की बारिश से 
मेरे ख़्वाबों की तरह
हथेलियों को जोड़कर
पी ली थीं मैंने भी
चाँदनी की चाशनी में डूबी
कुछ बूँदें
तुम थे कहीं उस एहसास में 
जिसने हलक को भिगोया तो था 
पर प्यास को बुझा न पाया था 
कल रात चाँद भी
भीगा भीगा सा
प्यासा प्यासा सा था
शायद तुमने भी देखा होगा उसको

तुम्हारे शहर में भी तो अक्सर
बारिशों वाली रातें हुआ करती थीं 

2 comments:

  1. Wooohooo... finally u write one in hindi again..
    Beautifully written, the metaphor is well thought...

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  2. Tulika,

    LIKHNE KAA ANDAAZ APNAA HI HAI. PARH KAR ACHHA LAGA.

    Take care

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