Wednesday, September 28, 2011

कल रात


कल रात मेरे हाथों में 
हाथ था उनका
चाँद का पहरा था 
मद्धम सी हवाएं थीं
कुछ नज्में भी साथ थीं
आधी नींद में, अलसाई,
हमारी गोद में बिखरी पड़ी थीं 
किसी ने चूमा था उनके माथे को जैसे 
सुर्ख सी, शरमाई हुई सी 
चाँदनी में सिमटी पड़ी थीं 
गुनगुनाती थीं धीमे से 
गीत रेगिस्तानों के 

रेट में डूबा कर पैर 
चाँदनी में लिपट कर 
कुछ गुनगुनाया था 
हमारा रिश्ता भी 

कल रात मेरे शहर में 
अरसे के बाद 
बारिशें हुई थीं 

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