जबसे आपने नए दाँत लगाये हैं
दिल में कुछ खटकता है
दिल में कुछ खटकता है
डर सा , लगाव सा
जब सुनती हूँ किस्से
आपके बचपन के उस साल के
जब आप 6 साल के थे
और मज़े लेते थे इंक़लाब के नारों में
सड़क पर मिली एक अकेली गोली में
वन्दे मातरम के बेसुरे , तोतले गान में
कहीं मेरा मन अटक जाता है
आपके इन नए दाँतों के बीच
जिन्होंने बदल कर रख दिया है
आपके चेहरे को
थोड़े ऊंचे हैं वो
और आपकी उन्मुक्त हँसी को
कुछ बचकाना सा बना देते हैं
और थोड़ी और मासूमियत डाल देते हैं
आपके बचपन के किस्सों में
पर मैं जानती हूँ
कि आपके दाँत कभी भी
ऊँचे नहीं थे
आकर्षक थे ...आपकी हँसी की तरह
पर अच्छे हैं ये भी
क्यूंकि इनसे उतना दर्द नहीं होता
जितना आपके पोपले मुंह को देख कर होता है
कोमल और मासूम अहसासों से परिपूर्ण सुन्दर रचना. शुभकामनायें !
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Awesome! Loved the new blog!
ReplyDeleteकितनी सरलता से अपने बात कह दी बहुत बहुत बधाई....
ReplyDeletenice! keep writing..
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