बुझ जाने दो आज दिये
अँधेरों को पास आने दो
एक बार बस साँसों में
इस सूनेपन को समाने दो
चाँद का चेहरा बादलों में
अब छुप जाए तो अच्छा
आहों की लड़ी सन्नाटे में
घुल जाए तो अच्छा
बंद कर के पलकों को
सपनों में न खोना
ये रात आज गहरा कर
थम जाए तो अच्छा
कब तक उजालों में हम तुम
झूठे हौसले तापें
सच आज आँखों के कोनों में
जम जाए तो अच्छा
फूँक लेने दो आज ये लौ
पी लें हम ये रात
एक आख़िरी बार आओ
जी लें ये जज़्बात