रेगिस्तान सा है दिल मेरा
दिन भर तपता है
एड़ियों की तरह
सुनहरी रेत के सुनहरे दानों में दबे
भूले हुए सपनों की तलाश में
प्यास में
पर जब उतर आती है रात इसके आँगन में
थम जाता है
शीतल शिथिल चाँदनी की तरह
जम जाता है
जैसे कभी किसी बेरहम बेपरवाह सूरज को
जानता ही नहीं था