कल रात मेरे हाथों में
हाथ था उनका
चाँद का पहरा था
मद्धम सी हवाएं थीं
कुछ नज्में भी साथ थीं
आधी नींद में, अलसाई,
हमारी गोद में बिखरी पड़ी थीं
किसी ने चूमा था उनके माथे को जैसे
सुर्ख सी, शरमाई हुई सी
चाँदनी में सिमटी पड़ी थीं
गुनगुनाती थीं धीमे से
गीत रेगिस्तानों के
रेट में डूबा कर पैर
चाँदनी में लिपट कर
कुछ गुनगुनाया था
हमारा रिश्ता भी
कल रात मेरे शहर में
अरसे के बाद
बारिशें हुई थीं