चाँद को देखा था कल रात मैंने
कुछ भीगा भीगा था वो भी
शाम की बारिश से
मेरे ख़्वाबों की तरह
हथेलियों को जोड़कर
पी ली थीं मैंने भी
चाँदनी की चाशनी में डूबी
कुछ बूँदें
तुम थे कहीं उस एहसास में
जिसने हलक को भिगोया तो था
पर प्यास को बुझा न पाया था
कल रात चाँद भी
भीगा भीगा सा
प्यासा प्यासा सा था
शायद तुमने भी देखा होगा उसको
तुम्हारे शहर में भी तो अक्सर
बारिशों वाली रातें हुआ करती थीं
Wooohooo... finally u write one in hindi again..
ReplyDeleteBeautifully written, the metaphor is well thought...
Tulika,
ReplyDeleteLIKHNE KAA ANDAAZ APNAA HI HAI. PARH KAR ACHHA LAGA.
Take care