Friday, November 25, 2011

रेगिस्तान


रेगिस्तान सा है दिल मेरा
दिन भर तपता है 
एड़ियों की तरह 
सुनहरी रेत के सुनहरे दानों में दबे 
भूले हुए सपनों की तलाश में
प्यास में 
पर जब उतर आती है रात इसके आँगन में 
थम जाता है 
शीतल शिथिल चाँदनी की तरह 
जम जाता है 
जैसे कभी किसी बेरहम बेपरवाह सूरज को
जानता ही नहीं था 

4 comments:

  1. very nice... :) "jam jata hai, jaise kabhi kisi beraham beparwah suraj ko janta hi nahi tha " wonderful lines...

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  2. उम्दा.........

    बहुत ही अच्छी प्रस्तुती के लिए बधाई स्वीकारें...और इससे अवगत करवाने के लिए धन्यवाद |

    आपका मेरे ब्लॉग पर हार्दिक अभिनन्दन

    pliz join my blog........

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  3. Tulika,

    SO KAVITAYEN PARHI. TALAASH EK SACH HAI. JO APNE AAPKO PAA JATAA HAI WOH ISHWAR TAK PAHOONCH JAATAA HAI. YEH BHI EK ACHCHHI KAVITAA HAI.

    Take care

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