शब्द एक दिन तुम लौट आना
अभी नाराज़गी तुम्हारी जायज़ है
मैंने ऐसे मुँह मोड़ा हमारे रिश्ते से
जैसे तुम मेरे अतिप्रिय नहीं
जैसे जीवन की हर मझधार में
नौका बनकर तुमने ना सम्भाला हो मुझे
जैसे बचपन की ऊँची चौखट
तुम्हारे कंधे पर सवार लड़खड़ाते हुए ना लाँघी हो
जैसे तुम बिन संभव था उन कच्चे मासूम पत्रों का व्यापार
जैसे तुम बिन बुन पाती कभी अपना ये टेढ़ा मेढ़ा सच्चा संसार
जैसे मेरे अन्तर्मन की भाषा का आकार नहीं हो तुम
जैसे मेरी अदम्य आशा का आधार नहीं हो तुम
फिर भी एक दिन तुम लौट आना
हमारे भूले बिसरे रिश्ते की खातिर
भूलने की मेरी फ़ितरत मैं कम कर लूँगी
तुम भी अपनी आदत की तरह खुल कर बरस जाना
और मैं ज़रिया बन एक बार फिर कलम धर लूँगी
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